२०८२, आश्विन ३० गते

Oct 16 2025 | २०८२, आश्विन ३० गते

अवधी आदिकवि कुक्कुरीपा: एक सिंहावलोकन

बुधवार , आश्विन २९, २०८२

  • 196
    Shares
  • 196
    Shares
  • (क) परिचय:
    कुक्कुरीपा एक लोकप्रिय अवधी काव्यधारा के प्रारम्भिक कवि होंय । लोक मान्यताकै अनुसार सोरहँवा सदीके लोकप्रिय कवि तुलसीदास अउर मल्लिक मोहम्मद जायसी से भी पहिले के कवि होंय कुक्कुरीपा । अवधी भााषाकै आदिकवि के रूप मे जानेजायवाला कवि कुक्कुरीपाकै जनम तत्कालीन कपिलवस्तु गणराज्य के एक ब्राह्मण परिवार मे ई. स. ८४० के आसपास होयक बात लिखा मिलत है । कुक्कुरीपाद, कुकुराजा आदि के नाम से भी वइं परिचित रहें । सोरहवाँ शताब्दी के अंत में तिब्बत में जन्मा जोनांग संप्रदाय के एक प्रमुख विद्वान अउ प्रतिपादक प्रसिद्ध तिब्बती बौद्ध लामा जे भारतीय बौद्ध धर्म के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ भी लिखे हैं–तारानाथ (मूल नाम कुन–द्गा–स्नयिङ–पो) यनिका मीनपा कै गुरु तथा चर्पटीनाथ कै शिष्य बताया हैं । तारानाथ के कहे मुताबिक अगर वइं मीनपा कै गुरु तथा चर्पटीनाथ कै शिष्य होंय तो वनिकर जनम निश्चित रूप से दशवी सदी मे भवा रहा काहेक नाते मीनपा अउर चर्पटी दशवी सदी से संबन्ध रक्खत हैं । वइं  बौद्ध धर्म कै वज्रयान शाखा के महत्वपूर्ण कवि रहें ।

    (ख) स्वभाव तथा साहित्यिक योगदान 
    कुक्कुरीपा एक फक्कड, घूमंतू अउर हास्यप्रिय कवि के रूप रहें । वइं समाज के कुरीति अउर कुसंस्कार पे तीखा व्यंग्य करत रचना करत रहें । अवधी एक प्राचीन भााषा होय । येंह भाषा कै उन्नयन मे आदिकवि कुक्कुरीपा के विशेष योगदान है । वनिकर रचना, कथन, दोहा अउर लोकगीत आमतौर पे ग्रामीण जीवन, सामाजिक विडम्बना अउर मानवीय प्रवृत्ति पे आधारित है । कुक्कुरीपा अपने सहज जीवन के समर्थक रहें । कुक्कुरीपा बज्रयान परम्परा मे आधारित तान्त्रिक अनुभुति के जीत के लिए प्रसिद्ध रहें । आठ से बारहवाँ सदी तक कै कवियन कै ५० कविता कै सँग्रह चार्यपद मे वनिकर तीन छन्द पद संख्या नं. २, २० अउर ४८ सामिल रहा । एक के शीर्षक सोमरस अउर दुसरे के शीर्षक कामरस है । लेकिन तीसरा वेह से फाटि के गायब होवेक बात उल्लेख मिलत है । यी पुस्तक कै मूल दस्तावेज हरप्रसाद शास्त्री कै नेपाल कै नेपाल शाही कोर्ट पुस्तकालय मे बीसवीँ सदी मे सैंतालिस पदसहित ताडपत्र पांडुलिपि मिला रहा । जम्मा पचास ठू पद मे से तीन ठू गायब है । कुक्कुरीपाद्वारा योग भवनोपदेश अउर स्रबपरिच्छेदन कइकै दुई पुस्तक लिखेक बात उल्लेख मिलत है। लेकिन उ दुई पुस्तक कहाँ अउ कइसे मिली अबहिन अध्ययन अनुसन्धान करब आवश्यक है ।
    कुक्कुरीपाद्वारा रचित अउ रणजीत साहाद्वारा संपादित सहज सिद्धि : चर्यागीति विमर्श मे लिखा कुछ पद यहाँ उल्लेख किहा गय है ।
    =================
    दुलिया दुहि पिटा धरण न जाइ ।
    रुखेर तेन्तलि कुम्भीरे खाइ ।।
    =================
    आङ्गन घरपण सुन ओ विआती ।
    कानेट चोरे निल अधराती ।।
    =================
    सुसुरा निद गेल बहुड़ी जागअ ।
    कानेट चोरे निल का गइ मागअ ।।
    =================
    दिवसइ बहुड़ी काउइ डरे भाअ ।
    राति भइले कामरू जाअ ।।
    =================
    अइसनि चर्या कुक्कुरी पाएँ गाइउ ।
    कोडि माझें एकु हिअँहि समाइउ ।।
    =================
    हाँउ निराली खमण साइँ ।
    मोहोर बिगोआ कहण न जाइ ।।
    =================
    फिटले असि भाए अन्तउडि चाहि ।
    जा एथु चाहमि सो एथु नाहि ।।
    =================
    पहिल विआण भोर वासण पूडा ।
    नाडि विआरन्ते सेव बापूडा ।।
    =================
    जाम जउवन मोर भइलेसि पूरा ।
    मूल निखलि बाप संघारा ।।
    =================
    भणथि कुक्कुरीपा ए भव थिरा ।
    जो एथु बूझए सो एथु बीरा ।।
    =================
    (ग) आदिकवि काहेक अउ कइसे
    ‘आदि’ कै अर्थ है ‘पहिला’ या ‘शुरुआती’, अउर ‘कवि’ कै अर्थ है ‘काव्य कै रचयिता’ । कुक्कुरीपा कै अवधी भाषा कै आदिकवि कहब मुनासिब है । काहे नाते वइं अवधी भाषा कै लोकबोली ही सरल अउर सहज ढंग से अपने रचना मे करत रहें । कुक्कुरीपाद्वारा योग भवनोपदेश अउर स्रबपरिच्छेदन कइकै दुई पुस्तक लिखेक बात उल्लेख मिलत है । आधिकारिक रूप से अबहिन तक मे मिला प्रमाण से ओनही अवधी भाषा के पहिला कवि देखात हैं । वनिकर कुछ पद भी उपर प्रस्तुत है । तमाम भाषाविद् अउ अनुसन्धानकर्ता के अनुसन्धान मे अवधी भाषा के उन्नयन मे काम करेवाले वनिसे पुरान आउर कउनो दुसर कवि नायी मिला हैं ।

    (घ) जन म स्थान के सम्बन्ध मे
    कुक्कुरीपा के जनम स्थान के सम्बन्ध मे तमाम विद्वान मे मतमेद है । फिर भी अधिकांश विद्वान के मत अउर अनुसन्धान मे वनिकर जनम तत्कालिन कपिलवस्तु गणराज्य मे एक ब्राहमण परिवार मे होवेक बात स्वीकरे हैं । भारतीय विद्वान् राहुल सांकृत्यायन के एक पुस्तक हिंदी काव्यधारा मे चौरासी सिद्ध पुरुष मे से चौंतीसहवा नम्बर पे कुक्कुरीपा के नाम है । वनिकर कहेक मुताबिक कुकुरिप्पा कै जनम कपिलवस्तु ( कविल–स–गुन ) गणराज्य मे एक ब्रहमण परिवार मे भवा रहा । कुन खेन पदकर ( वास्तविक नाम कुन्खेन पेमा कार्पो ) के अनुसार कुक्कुरीपा कै जनम स्थान वाराणसी के पुरुब भाग मे सुवर्णकुंड ( भोट भाषा मे झथ्रे’ शब्द ) होय । फिर भी अधिकांश विद्वान के अनुसन्धान मे वनिकर जनम कपिलवस्तु गणराज्य मे होवेक बात उल्लेख मिलत है ।

    (ङ) बौद्धमार्ग पे कुक्कुरीपा

    कुक्कुरीपा एक भिक्षु बनेक बात भी उल्लेख मिलत है । दिक्षा लिएक बाद वइं गया मे साधना करत रहें । कुन खेन पदकर के अनुसार वइं राहुल नाम कै उपाध्याय से उपसंपदा लइकै भिक्षु बने रहें । भिक्षु के रूप मे वनिकर नाम वीर्यभद्र रहा । ओनही उपाध्याय से मन्त्रयान कै दीक्षा लइकै बुद्धगया मे साधना करत रहें । वेंह वनिकर नाम ‘त्यायिपा’ के रूप मे प्रसिद्ध भवा । तिब्बती बौद्ध परम्परा में एक महान महासिद्ध ( महायानी सिद्ध योगी ) माना जात हैं । वइं तांत्रिक बौद्ध परम्परा ( मुख्यतः काग्यु तथा शाक्य सम्प्रदाय ) में प्रसिद्ध चौरासी महासिद्ध में से एक होंय । वास्तव मे कुक्कुरीपा के सम्बन्ध मे जवन कुछ जानकारी मिला है बौद्ध दर्शन अउ बौद्ध भिक्षु के बारे मे अध्ययन अनुसन्धान कै दौरान मे ही मिला है ।

    (च) कुक्कुरीपा के कुतुइन से भेट
    महासिद्धि प्राप्त कुक्कुरीपा मोक्ष खातिर तान्त्रिक बौद्धमार्ग मे चाँसो लिएवाले भिक्षु रहें । गांवगांव गल्लीगल्ली मे भिक्षा माङ के गुजारा चलावेवाले कुक्कुरीपा एक दिन भूख से तडफत झाडी मे बिमार कुतुइन के प्रति दया आवेक बाद अपने पास रक्खे लागें । ओका खाना खियाय कै तृप्त करिन । वेह दिन से ओकर खयाल अउर देखभाल करे लागें । एक गुफा मे ओकरे साथ रहे लागें । जवन कुछ भिक्षा मे मिलत रहा अपनो खात रहें अउर उहुक के खियावत रहें । वनिकर अनुपस्थिति मे वनिकर गुफा के रेखदेख उहै वफादार कुतुइन करत रही । वहि गुफा मे वइं धियान भी करत रहें ।

    (छ) कुक्कुरीपा के महालोक मे प्रस्थान 
    बारा बरिस के बाद कुक्कुरीपा लौकिक सिद्धि ‘अभिज्ञा’ आदि प्राप्ति किहिन । एक दिन कै बात होय त्रायस्त्रिंश महालोक कै देवता लोग कुक्कुरीपा कै त्याग, तपस्या अउ उपलब्धि कै देख कै वनिका स्वर्ग मे आवेक निमन्त्रणा दिहिन । वइं महालोक गएँ भी । वनिकर वहाँ बहुत अच्छा सेवा सत्कार भी भवा । भोज भतेर मे वइं सामिल भएँ । मोजमस्ती के जीवन रहते भी वनिकर धियान अपने गुफा मे रहल कुतुइन के तरफ रहा । उ काव खात होयी कइसे रहत होई कहिकै चिन्तित रहत रहें । कुकुरी भूख पियास से तडफत गोड से खरोंचत एक गडहा खनिस अउ ओसे निकला पानी– कीचड खात रही । उपर से अपने कुतुइन के दुबरात, दुःखी अउ भुखा पियासा तडपत देखिके वनिके बरदाश्त नाही भवा । देवता लोग के लाख अनुरोध के बाद वइं अपने गुफा मे लउट आएँ अपने कुतुइन के पास । एकदुसरे से मिलि के दुनो लोग बहुत खुसी भएँ । लेकिन जइसे प्रेम से वइं कुतुइन के हाथ फेरिन अचानक कुतुइन गायब होय गई अउर वेहं जगह पे एक डाकिनी खडी मिली । डाकिनी तिब्बती बौद्ध धर्म में शक्तिशाली स्त्री रूप होत है जे ज्ञान और प्रबुद्ध ऊर्जा कै प्रतिनिधित्व करत हीं । यी पात्र देवी के रूप में भी होय सकत हीं और आध्यात्मिक रूप से विकसित मानव स्त्रियाँ भी । अउ उ डाकिनी यनका ज्ञान दिहिस । लोभ लालच से बढि के भी कुछ चीज होत है कहिस । बोधि स्वरूप स्वर्ग के यनिका समझ मे बहुत बढिया से आवा । वनिका महामुद्रा सिद्धि प्राप्त भवा । वइं यथार्थ के समझिन अउर कपिलवस्तु गणराज्य मे लम्बा से समय तक रहें । कुकुर के साथ मे लम्बा समय से रहेक वाद वनिकर तमाम लोग शिष्य बनें मानवीय सेवा अउ पाठ के लिये ।

    (ज) कुक्कुरीपा नाम कइसे पडा
    कुकुर अउ कुतुइन के साथ रहेक नाते वनिकर नाम कुक्कुरीपा पडेक बात उल्लेख पावा जात है । कुन खेन पदकर के अनुसार कुक्कुरीपा कै जनम स्थान वाराणसी के पुरुब भाग मे सुवर्णकुंड ( भोट भाषा मे ‘थ्रे’ शब्द ) होय । वइं सरह कै छोट भाई रहें । यनिकर बचपन कै नाम उद्भटस्वामी रहा । वइं राहुल नाम कै उपाध्याय से उपसंपदा लइकै भिक्षु बने रहें । भिक्षु के रूप मे वनिकर नाम वीर्यभद्र रहा । ओनही उपाध्याय से मन्त्रयान कै दीक्षा लइकै बुद्धगया मे साधना करत रहें । वेंह वनिकर नाम ‘त्यायिपा’ के रूप मे प्रसिद्ध भवा । वेंह वंइ दिन मे एक सो कुकुरी ( वेंह समय पे कुतुइन के कुकुरी कहाजात रहा । ) के बीच मे रहत रहें अउ रात मे वनिके साथ मे गणचक्र के उपक्रम करत रहें । येंह कारण वनिकर नाम कुक्कुरीपा पडगवा ।

    (झ) कुकुरीप्पा एक सिद्ध पुरुष 
    सिद्धि कै अर्थ होय – सफलता, पूर्णता या प्राप्ति । बौद्ध धर्म कै तान्त्रिक संप्रदाय मे उल्लेख मिलत है कि चमत्कारिक साधन के द्वारा अलौकिक शक्ति प्राप्त करब कै सिद्धि कहाजात है । कुकुरीप्पा आठ चित्रात्मक रूप से पहिचाने जानेवाला सिद्ध पुरुष मे से एक होयँ , जे शमशान भूमि मे निवास करत रहें , अउर भी पूरा तरह से काग्युपा तथा शाक्य परम्परा ( संप्रदाय ) कै एक विशेष पहिचान होय । बारहँवा सदी मे अभयदत्त श्री के अवधारणा अनुरुप बज्रयान परम्परा मे आधारित भारत वर्ष के चौरासी सिद्ध महापुरुष मध्ये कुकुरीप्पा भी एक होयँ । कुक्कुरिपा कै वनिके करुणामय व्यवहार, गहन ध्यान अउ तांत्रिक योग में निपुणता के कारण महासिद्ध कहा गय है ।

    (ञ) निष्कर्ष 
    अबहिनतक कै अनुसन्धान से कुक्कुरीपा अवधी भाषा कै सब से पहिले कै कवि होंय पुष्टि होत है । वनिके जनम मिति अउ जनम स्थान के लइकै थप अनुसन्धान कै जरुरी है । वनिके सब रचना बटोरेक तरफ भी धियान जाब जरुरी है । आधिकारिक संस्थाद्वारा आधिकारिक रूप से ही वनिका अवधी भाषा कै आदिकवि घोषणा करे से बेहतर होयी ।